Monday, November 22, 2010

बंध प्रेमाचे

                             




मावळत्या सूर्याच्या तेजात, विरह वेदना भासतात|
श्यामवर्णी पृथ्वीच्या मनात, त्याच भावना दाटतात||
भेटीन प्रिये उद्या तुला, सूर्य म्हणतो जातांना |
अश्रू ओघळतात पृथ्वीचे, निरोप त्याला देतांना||
अश्रुपूर्ण नयनांनी ती, निरोप सूर्याला देते|
लवकर सरावी रात्र हि, प्रार्थना करू लागते||
बघता बघता पाहत होते,सूर्य पुन्हा येतो|
सहस्त्र किरणांनी पृथ्वीला, मिठीत घेऊ पाहतो||
कुणीही असो नर-नारायण,भावना एकच असतात|
तुम्हीच सांगा बंध प्रेमाचे,का कुणाला चुकतात???

Saturday, November 13, 2010

जीवन चक्र

गर्मी के दिनों में चिलचिलाती धुप से जब मन उबने लगता है, जब धरती की प्यासी आखे आसमान को आशा भरी निगाहों से देखने लगती है, तब इस प्यासी धरती की प्यास बुझाने बदलो का घुमट लेकर थंडी हवा आती है, और इन काले बादलो से रिमझिम बुँदे बरसने लगती है| बरसात के आने से सब तरफ हरियाली छा जाती है|
             यह बरसात गर्मी से मुरझाई धरती में नया जीवन भर देती है| हर तरफ हरी घास लहलहाते खेत, वन सब जी उठते है| एक बार फिर धरती पर जीवन की शुरुवात होती है|
              धरती के गर्भ से नए अंकुर निकलते है, मनो कही राम या  कृष्ण का जन्म हो रहा हो और इसी ख़ुशी में सम्पूर्ण धरती झूमने लगती है|एक बार फिर वनों, उद्द्यानो मे पंछियों के सुमधुर स्वर गूंजने लगते है व धरती लाल, पीले,हरे विविध रंगों की छटा बिखेरने लगती है, जैसे किसी चित्रकारने अपने सारे रंग यही भर दिए हो| झरनों में एक नई उम्मीद पानी के रूप में बहाने लगती है| पक्षियों की चहक, फूलो की महक,झरने की कलकल से पूरा वातावरण मंत्रमुग्ध होने लगता है| एक संगीत मय वातावरण की सुखद अनुभूति हमे मिलती है|
              गर्मी के बाद चार महीनो के लम्बे अंतराल के बाद जीवन के, खुशियों के विविध रंग इस धरती पर नज़र आने लगते है| लेकिन यह सुख सदा के लिए इस धरती पर नहीं रहता, क्योकि इस बरसात के बाद सर्दी तथा फिर एक बार गर्मी की ऋतू  आती है और एक बार फिर मृत्यु का तांडव देखने को मिलता है और जीवन चक्र ऐसे ही निरंतर चलता रहता है|
            प्रकृति के इस खेल से ही हमे जीवन की सबसे अनमोल सिख मिलती है, कि सुख हो या दुःख,जीवन हो या मृत्यु यहाँ कोई भी शाश्वत नहीं है अर्थात ज्यादा समय तक नहीं रहते| जिस प्रकार सुख  के बाद दुःख व एक बार फिर सुख आता है, उसी प्रकार जीवन के बाद मृत्यु तथा फिर नए जीवन कि उत्पत्ति होती है और जीवन - मृत्यु का यह चक्र चलता ही रहता है|